बरस क्यों नही जाते हो......


ओ बादलो क्यों तरसाते हो
इस मरुभुमि पर बरस क्यों नही जाते हो

सोने कि सी इस मिट्टी पर
वीरो की इस जननी पर
क्यों हलधरो को तरसाते हो
ओ मेघदुतो बरस क्यों नही जाते हो....
इस मरुभुमि पर बरस क्यों नही जाते हो....

जहाँ सुरज रोद्र रुप दिखलाता है
पत्ता-पत्ता गर्मी से कुम्हलाता है
ऐसे तरुओ व लोगो को क्यों तड़पाते हो
ओ मेघो बरस क्यों नही जाते हो.....

तुम बरसो ताकि हो हरियाली
हरियाली से चारो तरफ फैले खुशहाली
इस भुमि से क्यों सुखे ही चले जाते हो
ओ मेघो बरस क्यों नही जाते हो.....
इस मरुभुमि पर बरस क्यों नही जाते हो

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