माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
इस जहाँ में बस एक तुम ही मुझे समझ पाती हो.
याद हैं मुझे जब तुम मुझे चादर का झुला बनाकर सुलाती थी...
नहीं आती थी नींद मुझे, तब तुम गीत गाकर झुलाती थी...
और अपने प्यारे - कोमल हाथो से मेरे गालो को सहलाती हो...
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
याद हैं मुझे तुम्हारा वो कौवें को गाली देना,
जब आँगन में हाथ से मेरे वो रोटी ले जाता था..
शब्द नहीं होते थे मेरे पास, केवल रोना मुझे आता था...
चेहरे तरह-तरह के बनाकर तुम मुझे बहलाती हो
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
याद हैं मुझे पिताजी की डांट " पढाई में नहीं मन हैं "
और तुम्हारा यह कहकर बचाना कि " जाने दो जी अभी बचपन हैं "
फिर तुम मेरे उदास मन को प्यार से समझती हो ...
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
आज माँ मैं तुमसे हजारो मील दूर हूँ ..
इस संसार कि अनजानी गलियों में भटकने को मजबूर हूँ ..
पर अब भी बंद करने पर आँखे इस मानस पटल पर तुम ही उभर आती हो...
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
इस जहाँ में बस एक तुम ही मुझे समझ पाती हो.
याद हैं मुझे जब तुम मुझे चादर का झुला बनाकर सुलाती थी...
नहीं आती थी नींद मुझे, तब तुम गीत गाकर झुलाती थी...
और अपने प्यारे - कोमल हाथो से मेरे गालो को सहलाती हो...
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
याद हैं मुझे तुम्हारा वो कौवें को गाली देना,
जब आँगन में हाथ से मेरे वो रोटी ले जाता था..
शब्द नहीं होते थे मेरे पास, केवल रोना मुझे आता था...
चेहरे तरह-तरह के बनाकर तुम मुझे बहलाती हो
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
याद हैं मुझे पिताजी की डांट " पढाई में नहीं मन हैं "
और तुम्हारा यह कहकर बचाना कि " जाने दो जी अभी बचपन हैं "
फिर तुम मेरे उदास मन को प्यार से समझती हो ...
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...
आज माँ मैं तुमसे हजारो मील दूर हूँ ..
इस संसार कि अनजानी गलियों में भटकने को मजबूर हूँ ..
पर अब भी बंद करने पर आँखे इस मानस पटल पर तुम ही उभर आती हो...
माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो...