सागर.....

कभी - कभी  सोचता  हूँ  क्या  हैं  ये   सागर  ?

 ये  उस  माँ  कि  बूढ़ी  आँखों  का  जल  हैं
लड़  रहे  बच्चे  जिसके सम्पति  के  लोभ  में  आजकल  हैं |




कभी - कभी  सोचता  हूँ  क्या  हैं  ये   सागर  ?

लगता  पसीना  हैं  जो  ये  मजदूर  तपती  दोपहर  में  बहा  रहा  हैं ,
दिनभर  हाड़तोड़  मेहनत  कर  के  बड़ी  मुश्किल  से  ३  बच्चो  को  खाना  खिला  रहा  हैं |

कभी - कभी  सोचता  हूँ  क्या  हैं  ये   सागर  ?


हो  सकता  हैं   ये  आँख  के  पीछे  छिपा  पानी  किसान   कि ,
इंतज़ार  हैं  जिसे बारिश  और  चिंता हैं खेत खलिहान   कि  ....


कभी - कभी  सोचता  हूँ  क्या  हैं  ये   सागर  ?


नहीं  ये  तो  शराब   हैं  उस  शराबी   के   पैमाने  कि  ,
सुना  रहा  हैं जो  बिजली  के  खम्बे  को  कहानी   अपने  ज़माने  कि  |


कभी - कभी  सोचता  हूँ  क्या  हैं  ये   सागर  ?