आदरणीय पाठक,
यह कविता उन लोगो को समर्पित, जिन के प्रयासों में कोई कमी नहीं हैं लेकिन कुछ कारणवश जो सपने उन्होंने संजोये हैं उसकी मंजिल अभी दूर हैं ।
भूखे पेट नींद कहाँ आती हैं :
ठंडा पानी पीने से हाँ थोड़ी देर रुक जाती हैं ।
उठा के कंधो प़े बोरीयां कुछ पूंजी की हैं जमा..
दिन भर मेहनत कर के भी, थोडा सा पाता हूँ कमा...
पप्पू को कब भेजूंगा स्कूल, चिंता यही खाती हैं ...
भूखे पेट नींद भी कहाँ आती हैं ।
बूट पालिश करने को निकला हूँ मैं घर से..
चमकेगी तकदीर अपनी भी, घीस रहा हूँ बर्तन इस भरोसे से...
ओढ़ने के लिए चादर आसमान हैं और सोने को माटी हैं...
भूखे पेट नींद भी कहाँ आती हैं..
माँ गयी हैं काम करने, छोटी को मैं खिला रहा हूँ..
गीत आशाओं से भरे, अपनी तोतली आवाज़ में गा रहा हूँ...
रो मत मेरी गुडिया, सो जा मेरी गुडिया इतना क्यू सताती हैं ...
भूखे पेट नींद भी कहाँ आती हैं..