शब्दों के फेर में गुम हो ,
ये किवता नहीं तुम हो ...
ये किवता नहीं तुम हो ...
तुम्हारा चेहरा इतना नायब हें...,
सोये हुए पंथी का इक सुंदर सा ख़वाब हैं ...!
अंगूर की लता सी झुलाती हूइ जुल्फों का जाल ..!
ये गोरे गाल तुम्हारे ना जाने कीतने अरमां जगाते हें ,
रेशमी मुलायम सा , इक कोमल एहसास दीलाते हैं ...!
जो नशा कांच के इन पैमानों में हें ,
उनसे कहीं बढ़कर इन आँखों के मयखानों में हैं !
पायल की शीतल रुमझुम हो,
ये किवता नहीं तुम हो ...
होंठ तुम्हारे गुलाब के पत्ते शहद में डुबोये हुए से ,
देखा हे जबसे तुम्हे रहते हे हम खोये खोये से !
आवाज़ तुम्हारी हें जीवन-गीत की मीठी सी सरगम ,
जी करता हें इन पलकों को झपकते देखता रहूँ हरदम !
तस्वीर खिचवायीं थी कल फूलो ने साथ तुम्हारे ,
देख के अद्भूत रूप तुम्हारा , शर्मा रहे थे बेचारे !
रमज़ान में रात को छत पे आया करो बच बच के
इंसां मासूम कही ईद मुबारक न करले तुम्हे चाँद समझ के .
भगवान् की मूरत पे लगने वाला कुमकुम हो ,
ये किवता नहीं तुम हो ...